रघुनाथ शिरोमणि वाक्य
उच्चारण: [ reghunaath shiromeni ]
उदाहरण वाक्य
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- यह रघुनाथ शिरोमणि की शिष्य-परम्परा में गिने जाते हैं।
- अब मैं श्रीयुत् कुमारिल स्वामी तथा रघुनाथ शिरोमणि भट्टाचार्य के
- रघुनाथ शिरोमणि मुख्यत: तर्कशास्त्री थे।
- रघुनाथ शिरोमणि का जन्म सिलहर (आसाम) में हुआ था।
- रघुनाथ शिरोमणि का यह विचार है कि त्र्यणुक ही सूक्ष्मतम अविभाज्य तत्त्व है।
- रघुनाथ शिरोमणि का यह विचार है कि त्र्यणुक ही सूक्ष्मतम अविभाज्य तत्त्व है।
- रघुनाथ शिरोमणि ने अपने दार्शनिक चिन्तन में गंगेश द्वारा प्रणीत प्रणाली तंत्र का प्रयोग किया।
- नव्यन्याय की परम्परा में गंगेशोपाध्याय के बाद रघुनाथ शिरोमणि का ही स्थान माना जाता है।
- वेणीदत्त ने पदार्थमण्डन नामक ग्रन्थ में रघुनाथ शिरोमणि की मान्यताओं का प्रबल रूप से खण्डन किया।
- रघुनाथ शिरोमणि (1475 ई.) द्वारा भी दीक्षिति नाम्नी एक व्याख्या किरणावली प्रकाश पर रची गई।
- रघुनाथ शिरोमणि (जन्म-1477 ई.-मृत्यु-1557 ई.) एक मौलिक चिन्तक और प्रसिद्ध दार्शनिक थे।
- रघुनाथ शिरोमणि और भासर्वज्ञ के अनु सार दिशा ईश्वर से अभिन्न है और दिशासम्बन्धी सभी प्रतीतियाँ ईश्वर की उपाधियाँ हैं।
- इन भेदों का आधार रघुनाथ शिरोमणि ने साध्य को, उदयानाचार्य ने व्याप्तिग्राहक सहचार को और गंगेशोपाध्याय ने व्याप्ति को माना है।
- इसी तर्क को एक क़दम और आगे बढ़ाकर रघुनाथ शिरोमणि प्रतिपादित करते हैं कि देश तथा काल ईश्वर से अभिन्न है।
- इन भेदों का आधार रघुनाथ शिरोमणि ने साध्य को, उदयानाचार्य ने व्याप्तिग्राहक सहचार को और गंगेशोपाध्याय ने व्याप्ति को माना है।
- रघुनाथ शिरोमणि द्वारा की गई वैशेषिक पदार्थ व्यवस्था की आलोचना तथा उनके द्वारा प्रतिपादित कुछ नवीन पदार्थों का संक्षिप्त निरूपण ऊपर किया गया।
- रघुनाथ शिरोमणि, शंकर मिश्र, भगीरथ ठक्कुर तथा नारायणाचार्य आत्रेय जैसे विद्वानों की टीकाओं की सत्ता इस ग्रंथ की गूढ़ार्थता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
- रामतर्कालंकार के पुत्र श्री रघुनाथ शिरोमणि के शिष्य और तत्त्वचिन्तामणि के व्याख्याकार, मथुरानाथ तर्कवागीश द्वारा (1600 ई.) भी रहस्याख्या किरणावली व्याख्या की रचना की गई है।
- उपर्युक्त दो ग्रन्थों के अलावा रघुनाथ शिरोमणि ने प्राचीन एवं नवीन न्याय के अनेक ग्रन्थों पर समीक्षात्मक टीकाएं लिखी हैं, जिनका न्याय की परम्परा में विशिष्ट स्थान है।
- रघुनाथ शिरोमणि ने भी काल को द्रव्य न मानते हुए यह कहा कि ईश्वर से अतिरिक्त काल को पृथक् द्रव्य मानने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ईश्वर ही कालव्यवहार का विषय है।
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